सितारे गुम हुए ख़ुर्शीद निकला
अरक़ जब यार ने पोंछा जबीं से
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आए कभी तो दश्त से वो शहर की तरफ़
ज़ुल्फ़-ए-पुर-पेच के सौदे में अजब क्या इम्काँ
गिल है आरिज़ तो क़द्द-ए-यार दरख़्त
दुश्मन के काम करने लगा अब तो दोस्त भी
कूचा-ए-जानाँ मैं यारो कौन सुनता है मिरी
सताना क़त्ल करना फिर जलाना
लुत्फ़ तब अमर्द-परस्ती का है बाग़-ए-ख़ुल्द में
फ़रियाद की आती है सदा सीने से हर दम
आ के सज्जादा-नशीं क़ैस हुआ मेरे ब'अद
चशम-ए-ख़ूँबार सा बरसे न कभू पानी एक
परवाने के हुज़ूर जलाया न शम्अ' को
जलवा-ए-बर्क़-ए-कम-नुमा हैं हम