आ के सज्जादा-नशीं क़ैस हुआ मेरे ब'अद
न रही दश्त में ख़ाली मिरी जा मेरे ब'अद
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बा'द मरने के मिरी क़ब्र पे आया 'ग़ाफ़िल'
लुत्फ़ तब अमर्द-परस्ती का है बाग़-ए-ख़ुल्द में
आ के सज्जादा-नशीं क़ैस हुआ मेरे बा'द
वो आइना-तन आईना फिर किस लिए देखे
आशिक़ को न ले जाए ख़ुदा ऐसी गली में
किसी के मैं लिबास-ए-आरियत को क्या समझता हूँ
गुलशन-ए-इश्क़ का तमाशा देख
कौन दरिया-ए-मोहब्बत से उतर सकता है पार
जलवा-ए-बर्क़-ए-कम-नुमा हैं हम
शाना तो छुटा ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से उलझ कर
बरसों ख़याल-ए-यार रहा कुछ खिचा खिचा
ज़ुल्फ़-ए-पुर-पेच के सौदे में अजब क्या इम्काँ