शाना तो छुटा ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से उलझ कर
शाना तो छुटा ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से उलझ कर
सुलझा न ये दिल काकुल-ए-पेचाँ से उलझ कर
लेता है ख़बर कौन असीरान-ए-बला की
मर मर गए तारीकी-ए-ज़िंदाँ से उलझ कर
ज़ोरों पे चढ़ा है ये मिरा पंजा-ए-वहशत
दामन से उलझता है गरेबाँ से उलझ कर
दीवाने ख़त-ओ-ज़ुल्फ़ के सौदे की लहर में
क्या क्या न बके सुम्बुल-ओ-रैहाँ से उलझ कर
आसार-ए-क़यामत कहीं जल्दी हो नुमायाँ
घबराए है जी अब शब-ए-हिज्राँ से उलझ कर
डरता हूँ कहीं ताब नज़ाकत से न खावे
मू-ए-कमर उस ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से उलझ कर
सौ पेच में आया है हमारा दिल-ए-सद-चाक
शाना की तरह काकुल-ए-पेचाँ से उलझ कर
गिर्दाब-ए-बला में दिल-ए-आशिक़ को फँसाया
बाली ने तिरी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से उलझ कर
तय कर गए सब काबा-ए-मक़्सूद की मंज़िल
इक रह गए हम नख़्ल-ए-मुग़ीलाँ से उलझ कर
दौड़ा हुआ जाता है रक़ीब उस की गली को
यारब ये गिरे रस्ते में दामाँ से उलझ कर
जज़्ब-ए-दिल-ए-मजनूँ ने किया काम जो अपना
नाक़ा न रुका ख़ार-ए-बयाबाँ से उलझ कर
यारब मैं उसे देखूँ अगर दीदा-ए-बद से
रह जाए नज़र पंजा-ए-मिज़्गाँ से उलझ कर
ऐ तीर-फ़गन बस है यही मुझ को तमन्ना
छूटे न रग-ए-जाँ तिरे पैकाँ से उलझ कर
मत बहस रक़ीबान-ए-कज-अंदेश से 'ग़ाफ़िल'
बे-क़द्र न हो ऐसे सफ़ीहाँ से उलझ कर
(343) Peoples Rate This