गुलशन-ए-इश्क़ का तमाशा देख
सर-ए-मंसूर फल है दार दरख़्त
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न पूछ हिज्र में जो कुछ हुआ हमारा हाल
आशिक़ को न ले जाए ख़ुदा ऐसी गली में
अपने मजनूँ की ज़रा देख तो बे-परवाई
हक़्क़-ए-मेहनत उन ग़रीबों का समझते गर अमीर
आ के सज्जादा-नशीं क़ैस हुआ मेरे बा'द
गिल है आरिज़ तो क़द्द-ए-यार दरख़्त
सितारे गुम हुए ख़ुर्शीद निकला
दुश्मन के काम करने लगा अब तो दोस्त भी
निकला न दाग़-ए-दिल से हमारा तो कोई काम
वो हवा-ख़्वाह-ए-चमन हूँ कि चमन में हर सुब्ह
लैलतुल-क़द्र है हर शब उसे हर रोज़ है ईद