वो हवा-ख़्वाह-ए-चमन हूँ कि चमन में हर सुब्ह
पहले मैं आता हूँ और बाद-ए-सबा मेरे बा'द
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बा'द मरने के मिरी क़ब्र पे आया 'ग़ाफ़िल'
आ के सज्जादा-नशीं क़ैस हुआ मेरे ब'अद
शाना तो छुटा ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से उलझ कर
निगाह-ए-यार हम से आज बे-तक़सीर फिरती है
लुत्फ़ तब अमर्द-परस्ती का है बाग़-ए-ख़ुल्द में
परवाने के हुज़ूर जलाया न शम्अ' को
तेग़-ए-पुर-ख़ूँ वो अगर धोए कनार-ए-दरिया
इक बोसा माँगता हूँ मैं ख़ैरात-ए-हुस्न की
हर कोई उस का ख़रीदार हुआ चाहता है
हम फ़क़ीरों का सुने गर ज़िक्र-ए-अर्रा फ़ाख़्ता
वो आइना-तन आईना फिर किस लिए देखे
मर्तबा माशूक़ का आशिक़ से बाला-दस्त है