बा'द मरने के मिरी क़ब्र पे आया 'ग़ाफ़िल'
याद आई मिरे ईसा को दवा मेरे बा'द
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लैलतुल-क़द्र है हर शब उसे हर रोज़ है ईद
दुश्मन के काम करने लगा अब तो दोस्त भी
मर्तबा माशूक़ का आशिक़ से बाला-दस्त है
क्यूँकर ये तुफ़-ए-अश्क से मिज़्गाँ में लगी आग
कूचा-ए-जानाँ मैं यारो कौन सुनता है मिरी
ये कौन सा परवाना मुआ जल के लगन में
फ़रियाद की आती है सदा सीने से हर दम
तेज़ रखियो सर-ए-हर-ख़ार को ऐ दश्त-ए-जुनूँ
कौन दरिया-ए-मोहब्बत से उतर सकता है पार
हम फ़क़ीरों का सुने गर ज़िक्र-ए-अर्रा फ़ाख़्ता
किसी के मैं लिबास-ए-आरियत को क्या समझता हूँ
शाना तो छुटा ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से उलझ कर