तेज़ रखियो सर-ए-हर-ख़ार को ऐ दश्त-ए-जुनूँ
शायद आ जाए कोई आबला-पा मेरे बाद
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आए कभी तो दश्त से वो शहर की तरफ़
हक़्क़-ए-मेहनत उन ग़रीबों का समझते गर अमीर
निगाह-ए-यार हम से आज बे-तक़सीर फिरती है
ये कौन सा परवाना मुआ जल के लगन में
ख़त-नवेसी ये है तो मुश्ताक़ो
अपने मजनूँ की ज़रा देख तो बे-परवाई
कूचा-ए-जानाँ मैं यारो कौन सुनता है मिरी
गिल है आरिज़ तो क़द्द-ए-यार दरख़्त
सितारे गुम हुए ख़ुर्शीद निकला
लैलतुल-क़द्र है हर शब उसे हर रोज़ है ईद
वो आइना-तन आईना फिर किस लिए देखे
वो सुबह को इस डर से नहीं बाम पर आता