आए कभी तो दश्त से वो शहर की तरफ़
मजनूँ के पाँव में जो न ज़ंजीर-ए-जादा हो
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Wasi Shah
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(422) Peoples Rate This
तर्क-ए-शराब भी जो करूँगा तो मोहतसिब
किस तरह नाला करे बुलबुल चमन की याद में
इस्लाम का सुबूत है ऐ शैख़ कुफ़्र से
आशिक़ को न ले जाए ख़ुदा ऐसी गली में
ज़ुल्फ़-ए-पुर-पेच के सौदे में अजब क्या इम्काँ
आ के सज्जादा-नशीं क़ैस हुआ मेरे ब'अद
गुलशन-ए-इश्क़ का तमाशा देख
वो हवा-ख़्वाह-ए-चमन हूँ कि चमन में हर सुब्ह
ये कौन सा परवाना मुआ जल के लगन में
तेज़ रखियो सर-ए-हर-ख़ार को ऐ दश्त-ए-जुनूँ
है कौन शय जिस की ज़िद नहीं है जहाँ ख़ुशी है मलाल भी है
आ के सज्जादा-नशीं क़ैस हुआ मेरे बा'द