ज़ुल्फ़-ए-पुर-पेच के सौदे में अजब क्या इम्काँ
गर उलझ जाए ख़रीदार ख़रीदार के साथ
Anwar Masood
Gulzar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
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कूचा-ए-जानाँ मैं यारो कौन सुनता है मिरी
तेग़-ए-पुर-ख़ूँ वो अगर धोए कनार-ए-दरिया
अगर उर्यानी-ए-मजनूँ पे आता रहम लैला को
चशम-ए-ख़ूँबार सा बरसे न कभू पानी एक
लुत्फ़ तब अमर्द-परस्ती का है बाग़-ए-ख़ुल्द में
वो सुबह को इस डर से नहीं बाम पर आता
वो हवा-ख़्वाह-ए-चमन हूँ कि चमन में हर सुब्ह
सितारे गुम हुए ख़ुर्शीद निकला
ख़त-नवेसी ये है तो मुश्ताक़ो
हर उ'ज़्व-ए-बदन एक से है एक तिरा ख़ूब
ये कौन सा परवाना मुआ जल के लगन में
वो मेरा दर्द-ए-दिल क्या जानते हैं