लुत्फ़ तब अमर्द-परस्ती का है बाग़-ए-ख़ुल्द में
पास बैठे जबकि ग़िल्माँ और खड़ी हो हूर दूर
Ahmad Faraz
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Habib Jalib
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Gulzar
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Jaun Eliya
Wasi Shah
Parveen Shakir
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हर कोई उस का ख़रीदार हुआ चाहता है
वो हवा-ख़्वाह-ए-चमन हूँ कि चमन में हर सुब्ह
इक बोसा माँगता हूँ मैं ख़ैरात-ए-हुस्न की
वो मेरा दर्द-ए-दिल क्या जानते हैं
सितारे गुम हुए ख़ुर्शीद निकला
गुलशन-ए-इश्क़ का तमाशा देख
है कौन शय जिस की ज़िद नहीं है जहाँ ख़ुशी है मलाल भी है
क्या ख़बर है हम से महजूरों की उन को रोज़-ए-ईद
हक़्क़-ए-मेहनत उन ग़रीबों का समझते गर अमीर
ज़ुल्फ़-ए-पुर-पेच के सौदे में अजब क्या इम्काँ
न पूछ हिज्र में जो कुछ हुआ हमारा हाल
शाना तो छुटा ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से उलझ कर