मर्तबा माशूक़ का आशिक़ से बाला-दस्त है
ख़ार की जा ज़ेर-ए-पा गुल का मकाँ दस्तार पर
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चशम-ए-ख़ूँबार सा बरसे न कभू पानी एक
वो सुबह को इस डर से नहीं बाम पर आता
तेज़ रखियो सर-ए-हर-ख़ार को ऐ दश्त-ए-जुनूँ
ये कौन सा परवाना मुआ जल के लगन में
फ़रियाद की आती है सदा सीने से हर दम
जलवा-ए-बर्क़-ए-कम-नुमा हैं हम
आशिक़ को न ले जाए ख़ुदा ऐसी गली में
बा'द मरने के मिरी क़ब्र पे आया 'ग़ाफ़िल'
दुश्मन के काम करने लगा अब तो दोस्त भी
वो मेरा दर्द-ए-दिल क्या जानते हैं
लैलतुल-क़द्र है हर शब उसे हर रोज़ है ईद
हक़्क़-ए-मेहनत उन ग़रीबों का समझते गर अमीर