वो आइना-तन आईना फिर किस लिए देखे
जो देख ले मुँह अपना हर इक उ'ज़्व-ए-बदन में
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निकला न दाग़-ए-दिल से हमारा तो कोई काम
है कौन शय जिस की ज़िद नहीं है जहाँ ख़ुशी है मलाल भी है
ज़ुल्फ़-ए-पुर-पेच के सौदे में अजब क्या इम्काँ
हक़्क़-ए-मेहनत उन ग़रीबों का समझते गर अमीर
हम फ़क़ीरों का सुने गर ज़िक्र-ए-अर्रा फ़ाख़्ता
आ के सज्जादा-नशीं क़ैस हुआ मेरे बा'द
सताना क़त्ल करना फिर जलाना
वो मेरा दर्द-ए-दिल क्या जानते हैं
अगर उर्यानी-ए-मजनूँ पे आता रहम लैला को
वो सुबह को इस डर से नहीं बाम पर आता
तर्क-ए-शराब भी जो करूँगा तो मोहतसिब
अपने मजनूँ की ज़रा देख तो बे-परवाई