ग़ैरों से मिल के ही सही बे-बाक तो हुआ
बारे वो शोख़ पहले से चालाक तो हुआ
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घटा देख कर ख़ुश हुईं लड़कियाँ
ये नमाज़-ए-अस्र का वक़्त है
शब-ख़ूँ
अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ
ग़ैर से नफ़रत जो पा ली ख़र्च ख़ुद पर हो गई
मौत
तुम मेरे लिए इतने परेशान से क्यूँ हो
रात की अज़िय्यत
पूछते हैं कि क्या हुआ दिल को
वो जिस को मैं समझता रहा कामयाब दिन
अपने शहर के लिए दुआ
नील-ए-फ़लक के इस्म में नक़्श-ए-असीर के सबब