आँखों को फोड़ा डालूँ या दिल को तोड़ डालूँ
या इश्क़ की पकड़ कर गर्दन मरोड़ डालूँ
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जो दम हुक़्क़े का दूँ बोले कि ''मैं हुक़्क़ा नहीं पीता''
जलता है जिगर तो चश्म नम है
क्या मैं जाता हूँ सनम छुट तिरे दर और कहीं
होंटों तक आते आते हुई वो भी सर्द आह
अगरचे दिल तो हमें तुम से कुछ अज़ीज़ नहीं
नहीं करती असर फ़रियाद मेरी
मियाँ सब्र-आज़माई हो चुकी बस
आख़िर तो अर्श पर हैं अर्वाह-ए-शाइराँ भी
आँखें न चुरा 'मुसहफ़ी'-ए-रेख़्ता-गो से
दफ़ीना घर में क्या था और तो हम बादा-नोशों के
गर और भी मिरी तुर्बत पे यार ठहरेगा
शहर में मुझ से भड़कता था तसव्वुर तेरा