बस-कि हों मिल्लत-ओ-मज़हब से जहाँ के आज़ाद
ख़ंदा तक़रीर करे है मिरी बे-दीनी पर
Anwar Masood
Rahat Indori
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Gulzar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
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अश्क से मेरे बचे हम-साया क्यूँ-कर घर समेत
मुझ को पामाल कर गया है वही
आसाँ नहीं है तन्हा दर उस का बाज़ करना
न पूछ इश्क़ के सदमे उठाए हैं क्या क्या
मंसूर ने न ज़ुल्फ़ के कूचे की राह ली
मुज़्दा ऐ यास कि याँ कुंज-ए-क़फ़स के क़ैदी
ये जो अपने हाथ में दामन सँभाले जाते हैं
कर्बला है ये गली क्या जो नहीं मिलता याँ
तुम गर्म मिले हम से न सरमा के दिनों में
शोख़ी-ए-हुस्न के नज़्ज़ारे की ताक़त है कहाँ
ए'तिबारात हैं ये हस्ती-ए-मौहूमी के
ज़माने का चलन यकसाँ नहीं कुछ