होश उड़ जाएँगे ऐ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ तेरे
गर मैं अहवाल लिखा अपनी परेशानी का
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Gulzar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Parveen Shakir
Anwar Masood
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(283) Peoples Rate This
तू छोड़ अब तो असीर-ए-क़फ़स को ऐ सय्याद
क़िस्सा-ख़्वाँ बैठे हैं घेरे उस के तईं
आसमाँ को निशाना करते हैं
गरचे तुम ताज़ा गुल-ए-गुलशन-ए-रानाई हो
अश्क से मेरे बचे हम-साया क्यूँ-कर घर समेत
मैं क्या कहूँ उस नग़मा-ए-मस्तूर की तस्वीर
जिस को कहते हैं अरसा-ए-हस्ती
ये आँखें हैं तो सर कटा कर रहेंगी
मुझ से जो मेरी ज़ोहरा मिलती नहीं है अब तक
पस-ए-क़ाफ़िला जो ग़ुबार था कोई उस में नाक़ा-सवार था
मैं ने क्या और निगह से तिरे रुख़ को देखा
सोते हैं हम ज़मीं पर क्या ख़ाक ज़िंदगी है