काँटा हुआ हूँ सूख के याँ तक कि अब सुनार
काँटे में तौलते हैं मिरे उस्तुख़्वाँ का बोझ
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Gulzar
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(304) Peoples Rate This
बे-मुरव्वत तुझे आज़ुर्दा करेंगे हम लोग
कुछ इस क़दर नहीं सफ़र-ए-हस्ती-ओ-अदम
ले क़ैस ख़बर महमिल-ए-लैला तो न होवे
क्या बैठना क्या उठना क्या बोलना क्या हँसना
मैं वो दोज़ख़ हूँ कि आतिश पर मिरी
या-रब आबाद होवें घर सब के
दिल ख़ुश न हुआ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से निकल कर
क्यूँ कि कहिए कि अदा-बंदी है
गरचे ऐ दिल आशिक़-ए-शैदा है तू
इधर से झाँकते हैं गह उधर से देख लेते हैं
मत गोर-ए-ग़रीबाँ पर घोड़े को कुदाओ यूँ
अदम वालों की सोहबत से भी नफ़रत हो गई अब तो