तू जो जाता है वहीं नित दौड़ दौड़ ऐ 'मुसहफ़ी'
और क्या दुनिया के सारे ख़ूबसूरत मर गए
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ईद अब के भी गई यूँही किसी ने न कहा
क्या खींचे है ख़ुद को दूर अल्लाह
काफ़िर मुझे न कहियो ऐ मोमिनान-ए-सादिक़
आसाँ नहीं है तन्हा दर उस का बाज़ करना
गो कि तू 'मीर' से हुआ बेहतर
सामने आँखों के हर दम तिरी तिमसाल है आज
जीता रहूँ कि हिज्र में मर जाऊँ क्या करूँ
जम्अ रखते नहीं, नहीं मालूम
दम ग़नीमत है कि वक़्त-ए-ख़ुश-दिली मिलता नहीं
चली भी जा जरस-ए-ग़ुंचा की सदा पे नसीम
सज्दा करता हूँ मैं मेहराब समझ कर उस को
अब जिस दिल-ए-ख़्वाबीदा की खुलती नहीं आँखें