पड़ गए ज़ुल्फ़ों के फंदे और भी
हम उम्र के साथ हैं सफ़र में
आतिश-ए-हुस्न से इक आब है रुख़्सारों में
तमन्ना इक तरह की जान है जो मरते दम निकले
सहें कब तक जफ़ाएँ बेवफ़ाई देखने वाले
अपने अहद-ए-वफ़ा को भूल गए
तेरी रहमत का नाम सुन सुन कर
इस बात का मलाल नहीं है कि दिल गया
तेरी उलझी हुई बातों से मिरा दिल उलझा
तेरे मूए-ए-मिज़ा खटकते हैं
वक़्त आराम का नहीं मिलता
ये तो समझा मैं ख़ुदा को कि ख़ुदा है लेकिन