अजब ये दौर आया है कि जिस में
ग़लत कुछ भी नहीं सब कुछ सही है
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बात सच-मुच में निराली हो गई
है जिन के बाज़ुओं में दम वो दरिया पार कर लेंगे
घुटन तड़पन उदासी अश्क रुस्वाई अकेला-पन
गर न समझा तो 'नीरज' लगेगी कठिन
डाल दीं भूके को जिस में रोटियाँ
तुम से मिल कर देर तलक
मुश्किलों की यही हैं बड़ी मुश्किलें
अब रिश्तों में गहराई
बा'द मुद्दत के वो मिला है मुझे
सोचता हूँ ये सोच कर मैं उसे
नज़ाकत है न ख़ुशबू और न कोई दिलकशी ही है