छुपी है अन-गिनत चिंगारियाँ लफ़्ज़ों के दामन में
ज़रा पढ़ना ग़ज़ल की ये किताब आहिस्ता आहिस्ता
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रंज-ओ-ग़म से जो बे-ख़बर होता
दिल धड़कने का सबब क्या होगा
रंग तेरा उड़ा उड़ा सा है
मेरी शोहरत के पीछे है
कैसे तन्हा रात कटेगी
भीक दे कर न जाने क्या लेंगे
एक मुद्दत से उसे हम ने जुदा रक्खा है
जाने क्यूँ लोग मिरा नाम पढ़ा करते हैं
बात कैसी भी हो अंदाज़ नया देता था
कुछ रिश्ते हैं जिन की ख़ातिर
फूल सा इक खिला है आँखों में