जाने क्यूँ लोग मिरा नाम पढ़ा करते हैं
मैं ने चेहरे पे तिरे यूँ तो लिखा कुछ भी नहीं
Gulzar
Rahat Indori
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
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रंज-ओ-ग़म से जो बे-ख़बर होता
खेल-कूद कर शाम ढले क्यूँ
तेरी चाहत की है इतनी शिद्दत
आग लगाई तुम ने ही तो
मेरी शोहरत के पीछे है
जिस पर तमाम उम्र बहुत नाज़ था मुझे
पहली साँस पे मैं रोया था आख़िरी साँस पे दुनिया
छुपी है अन-गिनत चिंगारियाँ लफ़्ज़ों के दामन में
शंकर बना के लोग मुझे पूजते रहे
कुछ रिश्ते हैं जिन की ख़ातिर
रंग तेरा उड़ा उड़ा सा है