मेरी शोहरत के पीछे है
हाथ बहुत रुस्वाई का
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एक मुद्दत से उसे हम ने जुदा रक्खा है
आग लगाई तुम ने ही तो
दिल धड़कने का सबब क्या होगा
शाम हुई तो सूरज सोचे
तेरे मेरे बीच नहीं है ख़ून का रिश्ता फिर भी क्यूँ
कैसे तन्हा रात कटेगी
शंकर बना के लोग मुझे पूजते रहे
खेल-कूद कर शाम ढले क्यूँ
सारी बे-रंग सोच के चेहरे
भीक दे कर न जाने क्या लेंगे
सारी सारी रात मैं जागा