भीक दे कर न जाने क्या लेंगे
इक भिकारन डरी डरी सोचे
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सारी बे-रंग सोच के चेहरे
शंकर बना के लोग मुझे पूजते रहे
तेरी चाहत की है इतनी शिद्दत
खेल-कूद कर शाम ढले क्यूँ
मैं तो सब कुछ भूल चुका हूँ
छुपी है अन-गिनत चिंगारियाँ लफ़्ज़ों के दामन में
कैसे तन्हा रात कटेगी
दिल में ग़म आँख में हँसी देखी
आग लगाई तुम ने ही तो
जिस पर तमाम उम्र बहुत नाज़ था मुझे
एक मुद्दत से उसे हम ने जुदा रक्खा है
सारी सारी रात मैं जागा