तेरे मेरे बीच नहीं है ख़ून का रिश्ता फिर भी क्यूँ
तेरी आँख के सारे आँसू मेरी आँख से बहते हैं
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मेरी शोहरत के पीछे है
सारी बे-रंग सोच के चेहरे
बात कैसी भी हो अंदाज़ नया देता था
कुछ रिश्ते हैं जिन की ख़ातिर
मुझ को याद रहा तू भूला
शंकर बना के लोग मुझे पूजते रहे
मैं तो सब कुछ भूल चुका हूँ
आग लगाई तुम ने ही तो
शाम हुई तो सूरज सोचे
कैसे तन्हा रात कटेगी
जाने क्यूँ लोग मिरा नाम पढ़ा करते हैं
रंग तेरा उड़ा उड़ा सा है