शाम हुई तो सूरज सोचे
सारा दिन बेकार जले थे
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मुझ को याद रहा तू भूला
छुपी है अन-गिनत चिंगारियाँ लफ़्ज़ों के दामन में
रंज-ओ-ग़म से जो बे-ख़बर होता
तेरी चाहत की है इतनी शिद्दत
सारी बे-रंग सोच के चेहरे
फूल सा इक खिला है आँखों में
सारी सारी रात मैं जागा
है मिरे दिल की ये तस्वीर नज़र में रख लो
मेरी शोहरत के पीछे है
तेरे मेरे बीच नहीं है ख़ून का रिश्ता फिर भी क्यूँ
दिल धड़कने का सबब क्या होगा
जाने क्यूँ लोग मिरा नाम पढ़ा करते हैं