पहली साँस पे मैं रोया था आख़िरी साँस पे दुनिया
इन साँसों के बीच में हम ने क्या खोया क्या पाया
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बात कैसी भी हो अंदाज़ नया देता था
कैसे तन्हा रात कटेगी
फूल सा इक खिला है आँखों में
शाम हुई तो सूरज सोचे
तेरी चाहत की है इतनी शिद्दत
खेल-कूद कर शाम ढले क्यूँ
मुझ को याद रहा तू भूला
दिल धड़कने का सबब क्या होगा
जाने क्यूँ लोग मिरा नाम पढ़ा करते हैं
शंकर बना के लोग मुझे पूजते रहे
सारी बे-रंग सोच के चेहरे
एक मुद्दत से उसे हम ने जुदा रक्खा है