मोहमल है न जानें तो, समझें तो वज़ाहत है
है ज़ीस्त फ़क़त धोका और मौत हक़ीक़त है
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Gulzar
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(338) Peoples Rate This
जो परिंद ख़्वाहिशों के कभी हम शिकार करते
जाँ यूँ लिबास-ए-जिस्म को निकली उतार कर
हो पाए किसी के हम भी कहाँ यूँ कोई हमारा भी न हुआ
हर मौज-ए-हवादिस रखती है सीने में भँवर कुछ पिन्हाँ भी
डगमगाते कभी क़दमों को सँभलते देखा
डाल दी पैरों में उस शख़्स के ज़ंजीर यहाँ
बातों से फूल झड़ते थे लेकिन ख़बर न थी
आए थे क्यूँ सहरा में जुगनू बन कर
अब इस तरह भी रिवायत से इंहिराफ़ न कर
हम नए हैं न है ये कहानी नई
हम ज़मीं का आतिशीं उभार देखते रहे