ख़्वाहिश-ए-वस्ल ने उश्शाक़ को रुस्वा रक्खा

ख़्वाहिश-ए-वस्ल ने उश्शाक़ को रुस्वा रक्खा

हुस्न ने दिलकश-ओ-ख़ुश-रंग सरापा रक्खा

अपने किरदार के दाग़ों को छुपाने के लिए

मेरे आमाल पे तन्क़ीद को बरपा रक्खा

मेरे ना-कर्दा गुनाहों की नुमाइश के लिए

मुझ को ज़िंदाँ में लगा कर बड़ा ताला रक्खा

साफ़ इंकार न करने के बदल ज़ालिम ने

मेरी दिल-बस्तगी को वादा-ए-फ़र्दा रक्खा

कौन सी चीज़ गिरानी की बुलंदी पे नहीं

ख़ून-ए-नाहक़ मगर इस दौर ने सस्ता रक्खा

कर के महरूम उन्हें आब-ए-रवाँ से हम ने

नाम बे-आब गुज़रगाहों का दरिया रक्खा

अपने क़द से मिरा क़द देखा निकलता जो 'तुहूर'

कर के सर मेरा क़लम अपना सर ऊँचा रक्खा

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In Hindi By Famous Poet Raeesuddin Tahoor Jafri. is written by Raeesuddin Tahoor Jafri. Complete Poem in Hindi by Raeesuddin Tahoor Jafri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.