मोहब्बतें न रहीं उस के दिल में मेरे लिए
मगर वो मिलता था हँस कर कि वज़्अ-दार जो था
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सरसब्ज़ मौसमों का नशा भी मिरे लिए
हरी सुनहरी ख़ाक उड़ाने वाला मैं
इस तमाशे में तअस्सुर कोई लाने के लिए
चली डगर पर कभी न चलने वाला मैं
सर-ब-सर एक चमकती हुई तलवार था मैं
औरत कुत्ता और पड़ोस
सैर-ए-शब-ए-ला-मकाँ और मैं
मामूल
मुझ से इक इक क़दम पर बिछड़ता हुआ कौन था
बहुत कुछ मुंतज़िर इक बात का था
नफ़ी सारे हिसाबों की
हमें लपकती हवा पर सवार ले आई