नासेह के सर पर एक लगाई तड़ाक़ से
फिर हाथ मल रहे हैं कि अच्छी पड़ी नहीं
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रोते जो आए थे रुला के गए
न आया हमें इश्क़ करना न आया
आबाद करें बादा-कश अल्लाह का घर आज
बड़े पाक तीनत बड़े साफ़ बातिन
दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं
नज़र आती है दूर की सूरत
दर खुला सुब्ह को पौ फटते ही मय-ख़ाने का
दुनिया से अलग हम ने मयख़ाने का दर देखा
शेर-ए-तर मेरे छलकते हुए साग़र हैं 'रियाज़'
बहार आते ही फूलों ने छावनी छाई
इस हज में वो बुत भी साथ होगा
बाम पर आए कितनी शान से आज