बेवफ़ा लोगों में रहना तिरी क़िस्मत ही सही
इन में शामिल मैं तिरा नाम न होने दूँगा
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Parveen Shakir
Gulzar
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Javed Akhtar
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ख़िज़ाँ की रुत है जनम-दिन है और धुआँ और फूल
वो नींद अधूरी थी क्या ख़्वाब-ए-ना-तमाम था क्या
हम इतना चाहते थे एक दूसरे को 'ज़फ़र'
नामा-बर कोई नहीं है तो किसी लहर के हाथ
यहाँ जो पेड़ थे अपनी जड़ों को छोड़ चुके
मैं भी हूँ इक मकान की हद में
मैं जिस के साथ 'ज़फ़र' उम्र भर उठा बैठा
जिधर हो ज़िंदगी मुश्किल उधर नहीं आते
तुम्हें तो क़ब्र की मिट्टी भी अब पुकारती है
मोहब्बतें थीं कुछ ऐसी विसाल हो के रहा
मैं सोचता हूँ मुझे इंतिज़ार किस का है