दूर तक एक ख़ला है सो ख़ला के अंदर
सिर्फ़ तन्हाई की सूरत ही नज़र आएगी
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'ज़फ़र' वहाँ कि जहाँ हो कोई भी हद क़ाएम
अपनी यकजाई में भी ख़ुद से जुदा रहता हूँ
रात को ख़्वाब हो गई दिन को ख़याल हो गई
नए कपड़े बदल और बाल बना तिरे चाहने वाले और भी हैं
वो जाग रहा हो शायद अब तक
हम इतना चाहते थे एक दूसरे को 'ज़फ़र'
पड़ा न फ़र्क़ कोई पैरहन बदल के भी
मैं एक हाथ तिरी मौत से मिला आया
'ज़फ़र' है बेहतरी इस में कि मैं ख़मोश रहूँ
वो लोग आज ख़ुद इक दास्ताँ का हिस्सा हैं
शायरी फूल खिलाने के सिवा कुछ भी नहीं है तो 'ज़फ़र'