इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़
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मैं ने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी
जो लुत्फ़-ए-मय-कशी है निगारों में आएगा
अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ ख़ल्वत में
बहुत घुटन है
मैं जिसे प्यार का अंदाज़ समझ बैठा हूँ
सुब्ह-ए-नौ-रूज़
गुलशन गुलशन फूल
अहल-ए-दिल और भी हैं अहल-ए-वफ़ा और भी हैं
अपना दिल पेश करूँ अपनी वफ़ा पेश करूँ
नज़र से दिल में समाने वाले मिरी मोहब्बत तिरे लिए है
हम से अगर है तर्क-ए-तअल्लुक़ तो क्या हुआ
नहीं किया तो कर के देख