अभी नज़र में ठहर ध्यान से उतर के न जा
इस एक आन में सब कुछ तबाह कर के न जा
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शहर का शहर हुआ जान का प्यासा कैसा
उस के वारिस नज़र नहीं आए
डूब जाने का सलीक़ा नहीं आया वर्ना
हम-ज़ाद
मौत ने पर्दा करते करते पर्दा छोड़ दिया
नामों का इक हुजूम सही मेरे आस-पास
पाँव मारा था पहाड़ों पे तो पानी निकला
मुझ को मिरी शिकस्त की दोहरी सज़ा मिली
ख़ाक मैं उस की जुदाई में परेशान फिरूँ
मैं और मैं!
आग हो दिल में तो आँखों में धनक पैदा हो
रास्ता दे कि मोहब्बत में बदन शामिल है