ये कौन उतरा पए-गश्त अपनी मसनद से
और इंतिज़ाम-ए-मकान ओ सिरा बदलने लगा
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इक दास्तान अब भी सुनाते हैं फ़र्श ओ बाम
मिरे सीने में दिल है या कोई शहज़ादा-ए-ख़ुद-सर
महरान, मुझे दो
दुश्वार दिन के किनारे
मैं सो रहा था और मिरी ख़्वाब-गाह में
रात ढलने के ब'अद क्या होगा
पानी का हाथ
ये इंतिहा-ए-मसर्रत का शहर है 'सरवत'
घर से निकला तो मुलाक़ात हुई पानी से
बहता हुआ पानी
फिर वो बरसात ध्यान में आई
जंगल में कभी जो घर बनाऊँ