मैं ने तुम को दिल दिया और तुम ने मुझे रुस्वा किया
मैं ने तुम से क्या किया और तुम ने मुझ से क्या किया
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जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
समझे थे हम जो दोस्त तुझे ऐ मियाँ ग़लत
वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं
दिखाऊँगा तुझे ज़ाहिद उस आफ़त-ए-दीं को
ज़ालिम न मैं कहा था कि इस ख़ूँ से दरगुज़र
ग़रज़ कुफ़्र से कुछ न दीं से है मतलब
न कर 'सौदा' तू शिकवा हम से दिल की बे-क़रारी का
साक़ी गई बहार रही दिल में ये हवस
ऐ आह तिरी क़द्र असर ने तो न जानी
बे-वज्ह नईं है आइना हर बार देखना
बातिल है हम से दावा शायर को हम-सरी का