Ghazals of Seemab Akbarabadi
नाम | सीमाब अकबराबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Seemab Akbarabadi |
जन्म की तारीख | 1880 |
मौत की तिथि | 1951 |
जन्म स्थान | Karachi |
जिंदान-ए-काएनात में महसूर कर दिया
ज़ब्त से ना-आश्ना हम सब्र से बेगाना हम
ये किस ने शाख़-ए-गुल ला कर क़रीब-ए-आशियाँ रख दी
ये दौर-ए-तरक़्क़ी है रिफ़अत का ज़माना है
वुसअतें महदूद हैं इदराक-ए-इंसाँ के लिए
वो जब रंग-ए-परेशानी को ख़ल्वत-गीर देखेंगे
तक़दीर में इज़ाफ़ा-ए-सोज़-ए-वफ़ा हुआ
सुकूँ-पज़ीर जुनून-ए-शबाब हो न सका
सुबू पर जाम पर शीशे पे पैमाने पे क्या गुज़री
शुक्रिया हस्ती का! लेकिन तुम ने ये क्या कर दिया
शायद जगह नसीब हो उस गुल के हार में
शाम-ए-फ़ुर्क़त इंतिहा-ए-गर्दिश-ए-अय्याम है
रोज़-ए-फ़िराक़ हर तरफ़ इक इंतिशार था
रस्मन ही उन को नाला-ए-दिल की ख़बर तो हो
नसीम-ए-सुब्ह गुलशन में गुलों से खेलती होगी
नाहक़ शिकायत-ए-ग़म-ए-दुनिया करे कोई
न वो फ़रियाद का मतलब न मंशा-ए-फ़ुग़ाँ समझे
मुरत्तब हो के इक महशर ग़ुबार-ए-दिल से निकलेगा
मुझे फ़िक्र-ओ-सर-ए-वफ़ा है हनूज़
मेरी रिफ़अत पर जो हैराँ है तो हैरानी नहीं
महफ़िल-ए-इश्क़ में जब नाम तिरा लेते हैं
ख़ुद उठ के हाथ मेरे गरेबाँ में आ गए
खो कर तिरी गली में दिल-ए-बे-ख़बर को मैं
ख़त्म इस तरह नज़ा-ए-हक़-ओ-बातिल हो जाए
कमाल-ए-इलम ओ तहक़ीक़-ए-मुकम्मल का ये हासिल है
जो उम्र तेरी तलब में गँवाए जाते हैं
जो सालिक है तो अपने नफ़्स का इरफ़ान पैदा कर
जो मेरे तंगना-ए-दिल में तुझ को जल्वा-गर देखा
जो इंसाँ बारयाब-ए-पर्दा-ए-असरार हो जाए
जिस जगह जम्अ तिरे ख़ाक-नशीं होते हैं