शहरयार कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शहरयार (page 7)
नाम | शहरयार |
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अंग्रेज़ी नाम | Shahryar |
जन्म की तारीख | 1936 |
मौत की तिथि | 2012 |
जन्म स्थान | Aligarh |
शहर-ए-जुनूँ में कल तलक जो भी था सब बदल गया
शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को
सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का
पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रात
निस्बत रहे तुम से सदा हज़रत निज़ामुद्दीन-जी
निकला है चाँद शब की पज़ीराई के लिए
नज़र जो कोई भी तुझ सा हसीं नहीं आता
नशात-ए-ग़म भी मिला रंज-ए-शाद-मानी भी
नहीं रोक सकोगे जिस्म की इन परवाजों को
मोम के जिस्मों वाली इस मख़्लूक़ को रुस्वा मत करना
मिशअल-ए-दर्द फिर एक बार जला ली जाए
मंज़र गुज़िश्ता शब के दामन में भर रहा है
मा'बद-ए-ज़ीस्त में बुत की मिसाल जड़े होंगे
किस किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया
किस फ़िक्र किस ख़याल में खोया हुआ सा है
खुले जो आँख कभी दीदनी ये मंज़र हैं
कारोबार-ए-शौक़ में बस फ़ाएदा इतना हुआ
कहने को तो हर बात कही तेरे मुक़ाबिल
कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें
कब समाँ देखेंगे हम ज़ख़्मों के भर जाने का
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने
जुदा हुए वो लोग कि जिन को साथ में आना था
जो चाहती दुनिया है वो मुझ से नहीं होगा
जहाँ पे तेरी कमी भी न हो सके महसूस
जहाँ मैं होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा
जागता हूँ मैं एक अकेला दुनिया सोती है
जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं
हम पढ़ रहे थे ख़्वाब के पुर्ज़ों को जोड़ के
हुजूम-ए-दर्द मिला ज़िंदगी अज़ाब हुई