शहरयार कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शहरयार (page 8)
नाम | शहरयार |
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अंग्रेज़ी नाम | Shahryar |
जन्म की तारीख | 1936 |
मौत की तिथि | 2012 |
जन्म स्थान | Aligarh |
हज़ार बार मिटी और पाएमाल हुई है
हवा का ज़ोर ही काफ़ी बहाना होता है
हवा चले वरक़-ए-आरज़ू पलट जाए
हर ख़्वाब के मकाँ को मिस्मार कर दिया है
हँस रहा था मैं बहुत गो वक़्त वो रोने का था
हमारी आँख में नक़्शा ये किस मकान का है
गुज़रे थे हुसैन इब्न-ए-अली रात इधर से
गर्द को कुदूरतों की धो न पाए हम
फ़ज़ा-ए-मय-कदा बे-रंग लग रही है मुझे
दिल परेशाँ हो मगर आँख में हैरानी न हो
दिल में उतरेगी तो पूछेगी जुनूँ कितना है
दिल में रखता है न पलकों पे बिठाता है मुझे
दिल चीज़ क्या है आप मिरी जान लीजिए
देख दरिया को कि तुग़्यानी में है
दयार-ए-दिल न रहा बज़्म-ए-दोस्ताँ न रही
दाम-ए-उल्फ़त से छूटती ही नहीं
बुनियाद-ए-जहाँ में कजी क्यूँ है
भूली-बिसरी यादों की बारात नहीं आई
भटक गया कि मंज़िलों का वो सुराग़ पा गया
बे-ताब हैं और इश्क़ का दावा नहीं हम को
बहते दरियाओं में पानी की कमी देखना है
अक्स को क़ैद कि परछाईं को ज़ंजीर करें
अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो
ऐसे हिज्र के मौसम कब कब आते हैं
आसमाँ कुछ भी नहीं अब तेरे करने के लिए
आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई
आँधियाँ आती थीं लेकिन कभी ऐसा न हुआ
आँधी की ज़द में शम-ए-तमन्ना जलाई जाए
आहट जो सुनाई दी है हिज्र की शब की है