या मैं सोचूँ कुछ भी न उस के बारे में
या ऐसा हो दुनिया और बदल जाए
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हवा का ज़ोर ही काफ़ी बहाना होता है
गुम-शुदा
हमारी आँख में नक़्शा ये किस मकान का है
अब रात की दीवार को ढाना है ज़रूरी
पल भर में कैसे लोग बदल जाते हैं यहाँ
रात को दिन से मिलाने की हवस थी हम को
वापसी
नहीं रोक सकोगे जिस्म की इन परवाजों को
ऐसे हिज्र के मौसम कब कब आते हैं
वो कौन था वो कहाँ का था क्या हुआ था उसे
भटक गया कि मंज़िलों का वो सुराग़ पा गया
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने