मुद्दत से इल्तिफ़ात मिरे हाल पर नहीं
कुछ तो कजी है दिल में कि सीधी नज़र नहीं
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ख़ुदा-परस्त हुए हम न बुत-परस्त हुए
गया सब अंदोह अपने दिल का थमे अब आँसू क़रार आया
आबला ख़ार-ए-सर-ए-मिज़्गाँ ने फोड़ा साँप का
आज़ुर्दा हो गया वो ख़रीदार बे-सबब
ज़ालिम हमारी आज की ये बात याद रख
चुनने न दिया एक मुझे लाख झड़े फूल
साक़ी तिरे बग़ैर है महफ़िल से दिल उचाट
इफ़्शा हुए असरार-ए-जुनूँ जामा-दरी से
फ़ुर्क़त की आफ़त बुरे दिन काटना साल है
ख़ूब-रू सब हैं मगर हूरा-शमाइल एक है
वक़्त-ए-आख़िर हमें दीदार दिखाया न गया
दाग़ बैआ'ना हुस्न का न हुआ