फ़िक्र में मुफ़्त उम्र खोना है
गर भला मानस है तो ख़ंदों से तू मिल मिल न हँस
हमारी गुफ़्तुगू सब से जुदा है
साक़ी मुझे ख़ुमार सताए है ला शराब
मैं पीर हो गया हूँ और अब तक जवाँ है दर्द
इश्क़ में पास-ए-जाँ नहीं है दुरुस्त
आई ईद व दिल में नहीं कुछ हवा-ए-ईद
तुम्हारे इश्क़ में हम नंग-ओ-नाम भूल गए
जल्वा-गर फ़ानूस-ए-तन में है हमारा मन चराग़
कलेजा मुँह को आया और नफ़स करने लगा तंगी
मिरी बातों से अब आज़ुर्दा न होना साक़ी
इन दिनों सब को हुआ है साफ़-गोई का तलाश