चला जाता था 'हातिम' आज कुछ वाही-तबाही सा
जो देखा हाथ में उस के तिरे शिकवे का दफ़्तर था
Jaun Eliya
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Gulzar
Rahat Indori
Parveen Shakir
Wasi Shah
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(440) Peoples Rate This
जिस को देखा सो यहाँ दुश्मन-ए-जाँ है अपना
जा भिड़ाता है हमेशा मुझे ख़ूँ-ख़्वारों से
आज हमें और ही नज़र आता है कुछ सोहबत का रंग
गर भला मानस है तो ख़ंदों से तू मिल मिल न हँस
सब्र बिन और कुछ न लो हमराह
अभी मस्जिद-नशीन-ए-तारुम-ए-अफ़्लाक हो जावे
साक़ी मुझे ख़ुमार सताए है ला शराब
ऐ मुसलमानो बड़ा काफ़िर है वो
वक़्त फ़ुर्सत दे तो मिल बैठें कहीं बाहम दो दम
हम सीं मस्तों को बस है तेरी निगाह
तुम्हारे इश्क़ में हम नंग-ओ-नाम भूल गए
इस दुख में हाए यार यगाने किधर गए