बदलती जा रही है दिल की दुनिया
नए दस्तूर होते जा रहे हैं
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नज़र-नवाज़ नज़ारों में जी नहीं लगता
ये दुनिया है यहाँ दिल को लगाना किस को आता है
बे-ख़ुदी है न होशियारी है
वो दिल में रहते हैं दिल का निशाँ नहीं मा'लूम
ख़ुश हूँ कि मिरा हुस्न-ए-तलब काम तो आया
मोहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम
बुज़-दिली होगी चराग़ों को दिखाना आँखें
वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िंदगी वही मरहले
ये ऐश-ओ-तरब के मतवाले बे-कार की बातें करते हैं
शब की बहार सुब्ह की नुदरत न पूछिए
आँख से आँख मिलाता है कोई
ख़िरद को आज़माना चाहता हूँ