दुनिया है कि गोशा-ए-जहन्नम
हर वक़्त अज़ाब-ए-इलाही तौबा
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आज मेरी शब-ए-फ़ुर्क़त की सहर आई है
जब सुब्ह का मंज़र होता है या चाँदनी-रातें होती हैं
हमारे साथ जिसे मौत से हो प्यार चले
बहुत तवील शब-ए-ग़म है क्या किया जाए
हर शय तुझी को सामने लाए तो क्या करूँ
जो हँस हँस के हर ग़म गवारा करे है
मिरी ख़ुशी से मिरे दोस्तों को ग़म है 'शमीम'
गले लगा के जो सुनते थे दिल की आहों को
गो तही-दामन हूँ लेकिन ग़म नहीं
दुनिया-ए-मोहब्बत में हम से हर अपना पराया छूट गया
रौशनी लेने चले थे और अंधेरे छा गए