याद और याद को भुलाने में
उम्र की फ़स्ल कट गई देखो
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आँखें कहीं दिमाग़ कहीं दस्त ओ पा कहीं
किसी के साथ अब साया नहीं है
ऊँची इमारतें तो बड़ी शानदार हैं
एक आसेब है हर इक घर में
इक साएँ साएँ घेरे है गिरते मकान को
वो गुनगुनाते रास्ते ख़्वाबों के क्या हुए
कोई दुआ कभी तो हमारी क़ुबूल कर
मौज-ए-हवा से फूलों के चेहरे उतर गए
मेरे अल्फ़ाज़ में असर रख दे
अपने अफ़्साने की शोहरत उसे मंज़ूर न थी
मौज-ए-हवा तो अब के अजब काम कर गई
वहशत तो संग-ओ-ख़िश्त की तरतीब ले गई