वहशत तो संग-ओ-ख़िश्त की तरतीब ले गई
अब फ़िक्र ये है दश्त की वुसअत भी ले न जाए
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Gulzar
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Allama Iqbal
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(533) Peoples Rate This
आँखों में रात ख़्वाब का ख़ंजर उतर गया
पत्तियाँ हो गईं हरी देखो
मेरे अल्फ़ाज़ में असर रख दे
बयाज़ें खो गई हैं
कई शक्लों में ख़ुद को सोचता है
आरज़ू थी एक दिन तुझ से मिलूँ
मंज़र को किसी तरह बदलने की दुआ दे
आज हर सम्त भागते हैं लोग
बरसों से घूमता है इसी तरह रात दिन
आँखें कहीं दिमाग़ कहीं दस्त ओ पा कहीं