सिराज औरंगाबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सिराज औरंगाबादी (page 7)
नाम | सिराज औरंगाबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Siraj Aurangabadi |
जन्म की तारीख | 1714 |
मौत की तिथि | 1763 |
जन्म स्थान | Aurangabad |
हिज्र की आग में अज़ाब में न दे
हवस की आँख सीं वो चेहरा-ए-रौशन न देखोगे
हर तरफ़ यार का तमाशा है
हर किसी कूँ गुज़र-ए-इश्क़ में आनाँ मुश्किल
हर हर वरक़ पे क्यूँ कि लिखूँ दास्तान-ए-हिज्र
हमारी आँखों की पुतलियों में तिरा मुबारक मक़ाम हैगा
हमारे पास जानाँ आन पहुँचा
हमारा दिलबर-ए-गुलफ़म आया
है जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ में तिरी तीर की आवाज़
है दिल में ख़याल-ए-गुल-ए-रुख़्सार किसी का
गुल-रुख़ों ने किए हैं सैर का ठाट
ग़म-ए-आहिस्ता-रौ याँ रफ़्ता रफ़्ता
ग़म ने बाँधा है मिरे जी पे खला हाए खला
ग़म की जब सोज़िश सीं महरम होवेगा
फ़िदा कर जान अगर जानी यही है
फ़स्ल-ए-गुल का ग़म दिल-ए-नाशाद पर बाक़ी रहा
फ़जर उठ यार का दीदार करनाँ
दो-रंगी ख़ूब नईं यक-रंग हो जा
दिन-ब-दिन अब लुत्फ़ तेरा हम पे कम होने लगा
दिल-ए-नादाँ मिरा है बे-तक़सीर
दिलदार की कशिश ने ऐंचा है मन हमारा
दिल मिरा साग़र-ए-शिकायत है
दिल में ख़यालात-ए-रंगीं गुज़रते हैं जिऊँ बॉस फूलों के रंगों में रहिए
दिल में जब आ के इश्क़ ने तेरे महल किया
देखा है जिस ने यार के रुख़्सार की तरफ़
चराग़-ए-मह सीं रौशन-तर है हुस्न-ए-बे-मिसाल उस का
भरा कमाल-ए-वफ़ा सें ख़याल का शीशा
बात कर दिल सती हिजाब निकाल
अव्वल सीं दिल मिरा जो गिरफ़्तार था सो है
अश्क-ए-ख़ूनीं है शफ़क़ आज मिरी आँखों में