बुलबुल ओ परवाना
सती
गंगा जी
ब-ख़ुदा इश्क़ का आज़ार बुरा होता है
काफ़ूर है दिल-जलों को तनवीर-ए-सहर
फ़क़ीरों पे अपने करम इक ज़रा कर
शब-ए-विसाल मज़ा दे रही है 'तू' तेरी
इस बहर में सैकड़ों ही लंगर टूटे
किसी मस्त-ए-ख़्वाब का है अबस इंतिज़ार सो जा
बजाए मय दिया पानी का इक गिलास मुझे
पदमनी
गुलज़ार-ए-वतन